Keral Mein Hathini Ki Hatya केरल में हथिनी की हत्या

Keral Mein Hathini Ki Hatya  निर्दयता की हद पार कर देने का जीता जागता उदाहरण है। किसी को जन्म देना, जब हमारे हाथ में नहीं तो निर्दयता पूर्वक किसी की जान लेने का अधिकार हमें किस ने दिया। जिन जानवरों को हमारे प्यार और देखभाल की जरूरत है , उनके साथ ऐसी बर्बरता क्यों …

केरल की घटना  Keral Mein Hathini Ki Hatya

पिछले दिनों केरल में एक हथिनी के साथ हुई बर्बरता मन को भयावह रूप से व्यथित कर देने वाली है।उस हथनी को बारूद से भरा अनानास खिलाया गया था। जिसके कारण उसके मुंह में विस्फोट हुआ और वह घायल हुई। वह कई महीनों की गर्भवती थी और मुंह के घायल हो जाने की वजह से कई दिनों से भूखी थी अपने मुंह की जलन को शांत करने के लिए कई दिनों तक वह पानी में मुंह डालकर खड़ी रही।

वन विभाग के अधिकारियों द्वारा बहुत कोशिश की गई उसको बाहर निकालने की। परंतु वह बाहर नहीं आई, और फेफड़ों में अत्यधिक पानी भर जाने की वजह से उसकी मौत हुई। क्या यह निर्दयता की हद नहीं? क्या इसे किसी भी तरह उचित कहा जा सकता हैं

जीवन हर जानवर का हक

एक बेजुबान जानवर की इतनी बेरहमी से की गई हत्या, कभी किसी भी प्रकार से उचित नहीं हो सकती। एक तरफ जहां हमारी सरकारें जानवरों की सुरक्षा के लिए तरह-तरह के नियम बनाती है। वही कुछ ऐसे असामाजिक लोग भी हैं, जिन्हें इंसान कहने से इंसानियत को शर्म आती है।

मेरा सवाल है, क्या कसूर था उसका, और उसके अजन्मे बच्चे का। जिसकी उन्हें यह सजा दी गई । इस पूरी घटना के कुछ दिनों बाद इसी प्रकार की एक और घटना एक गाय के साथ होती हैं। क्या मानव से भरी इस दुनिया में किसी और जानवर को जीने का हक नहीं है । क्या इस संपूर्ण ब्रह्मांड पर प्रकृति पर पृथ्वी पर सिर्फ मानव का हक है

हम जानते हैं ऐसा नहीं है, परंतु फिर किस घमंड में इंसान स्वयं को सर्वे सर्वा समझने लगा है कि अपने मजे के लिए वह दूसरे जानवरों यहां तक कि इंसानों को भी भयंकर कष्ट पहुंचाने से नहीं चूकता उनकी जिंदगी में खत्म करने से नहीं चूकते।

क्यों ? उसे किसी भी प्रकार का डर नहीं है! क्यों? वह दूसरों के दुख को देखकर दुखी होने के बजाय उनके दुख का कारण बनता जा रहा है।
अगर ऐसा चलता रहा । तो हम प्रकृति का समूल विनाश कर देंगे ।और यह विनाश संपूर्ण मानव के विनाश का कारण बनेगा ।इससे पहले की परिस्थितियां बहुत भयानक हो जाएं।
इस हथिनी की हत्या पूरे समाज के लिए एक अलार्म है कि अब कुछ करने का वक्त है अब यह आवश्यक है कि जमीनी स्तर पर कुछ ऐसे कदम उठाए जाएं जिससे निर्दोष जानवरों की हत्याएं रोकी जा सकें।

हमारी समाजिक जिम्मेदारी

मन यह सोचकर डरता है कि आज अगर यह हालत हैं तो आने वाले वक्त में क्या होगा, जरूरी है यह सवाल हम सबके जहन में आए।
यह हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि यदि हमें अपना भविष्य सुधारना है।तो शुरुआत आज से करनी होगी। आज के बच्चे जो कल के वयस्क मानव बनेंगे। उन्हें इस प्रकार की राक्षसों में तब्दील होने से रोकना होगा।

इंसान के जो गुण आज खो चुके हैं उन्हें दोबारा पाना होगा। उसके अंदर एहसास की ताकत जगानी होगी। ताकि वह दूसरों के दुख को महसूस कर पाए। ना कि दूसरों के दुख में खुशी का अनुभव करे।

माता-पिता अपने बच्चों को जीवन की शुरुआत से सही और गलत में भेद करना सिखाएं। जानवरों की प्रति दया भाव रखने का पाठ पढ़ाएं।

उन्हें सिखाया जाए की जानवरों को भी दर्द और तकलीफ की अनुभूति होती है। और वे दया और करुणा के पात्र होते हैं। उन्हें हमेशा घायल और परेशान जीवो की मदद के लिए प्रेरित करें।

अपने बच्चों के हाथों पक्षियों को दाना डालने, पानी पिलाने,गाय को रोटी खिलाने, कुत्ते को रोटी डालने,जैसी छोटी-छोटी गतिविधियां करवाएं। क्योंकि जैसी आदत आप बचपन में डालेंगे बच्चे बड़े होकर वैसे ही बनेंगे।

कुछ पुरानी परंपराओं को जीवंत करके, यदि हम अपने पर्यावरण और अपने आसपास के जीवो की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। तो उन्हें अपनाने में हमें किसी भी तरह का हर्ज नहीं होना चाहिए।

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